Thursday, December 30, 2010

आरक्षण आंदोलन का समाधान क्या?

राजस्थान के गुर्जर एक साथ पिछले चार साल से आरक्षण की आग में समान रूप से झुलस रहे हैं। गुर्जरों में गम भी है, गुस्सा भी। सरकारी कोशिशें भी जारी हैं, लेकिन पीछे देखें तो लगता है, सरकारें करना कुछ चाहती हैं, हो कुछ और ही जाता है। आखिर इस समस्या का समाधान क्या है? तमिलनाडु और कर्नाटक के आरक्षण आईने में इसकी शक्ल कैसी है?
विशेषज्ञों के अनुसार ये हो सकता है समाधान का रास्ता?
आखिर गुर्जरों की मांग कैसे पूरी हो सकती है? 50 प्रतिशत की सीमा लांघकर या 50 प्रतिशत के भीतर ओबीसी के 21 प्रतिशत आरक्षण को बांटकर! विकल्प कई हैं, लेकिन हर विकल्प में कोई न कोई पेच भी है। रास्ता जरा मुश्किल है, लेकिन विशेषज्ञ आश्वत हैं कि हल दूर नहीं है।
विकल्प : 1
सरकार पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाए और गुर्जरों को विशेष पिछड़ा वर्ग में 5 फीसदी आरक्षण देने की जरूरत को साबित करे।
असर क्या :  जातियों के पिछड़ेपन की सही तस्वीर सामने आएगी। कई प्रभावशाली जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित भी हो सकती हैं।
दिक्कत क्या : 82 ओबीसी जातियों में से चार जातियों के पिछड़ेपन को आंकड़ों से साबित करना आसान नहीं। कई दूसरी जातियां भी अपने पिछड़ेपन के आंकड़ों के आधार पर विशेष आरक्षण की मांग कर सकती हैं। आंकड़े जुटाने के लिए हाईकोर्ट ने एक साल का समय दिया है। इससे गुर्जरों को फिलहाल कोई आश्वासन नहीं मिलता।
विकल्प  : 2
ओबीसी के मौजूदा 21 प्रतिशत आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 26 प्रतिशत करें और बढ़ा हुआ 5 प्रतिशत आरक्षण गुर्जरों को दिया जाए। 
असर क्या : ओबीसी के आरक्षण की सीमा 5 प्रतिशत बढ़ाने से प्रदेश में कुल आरक्षण 54 प्रतिशत हो जाएगा और आरक्षण सीमा 50 फीसदी रखने की बाध्यता लागू हो जाएगी। 
दिक्कत क्या: 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने के लिए जातियों का पिछड़ापन आंकड़ों से साबित करना पड़ेगा। इसमें फिर से विकल्प नंबर एक वाली दिक्कतें होंगी। हालांकि, रोचक बात यह है कि 50' से नीचे आरक्षण की व्यवस्था करने पर भी सरकार को औचित्य साबित करना होता है।
विकल्प : 3
ओबीसी के 21 फीसदी आरक्षण का विभाजन हो। इसमें से 5 फीसदी आरक्षण गुर्जर समेत चार जातियों के विशेष पिछड़े वर्ग को दे दिया जाए। 21 फीसदी आरक्षण को कई वर्गों के बीच भी बांटा जा सकता है। 
असर क्या :  ओबीसी आरक्षण का लाभ ले रही बाकी जातियां इसका विरोध कर सकती हैं, लेकिन ओबीसी में कम आबादी वाली वंचित जातियों को इससे फायदा मिल सकता है।
दिक्कत क्या: अन्य  ओबीसी जातियों के नाराज होने का खतरा है। ओबीसी आरक्षण केबंटवारे के खिलाफ ये जातियां आंदोलन कर सकती हैं।
विकल्प : 4
गुर्जरों के पांच प्रतिशत आरक्षण पर विधानसभा में फिर से बिल लाया जाए और इसे नवीं अनुसूची में शामिल करवाने के लिए केंद्र को भेजा जाए।
असर क्या : गुर्जरों को इसके लिए फिर से तैयार करना चुनौती। सुप्रीम कोर्ट विशेष श्रेणी के आरक्षण पर सवाल उठा चुका है, इसलिए यह रास्ता निर्विघ्न नहीं है।
    दिक्कत क्या : तमिलनाडु ने नवीं अनुसूची का रास्ता अपनाया था। इसके लिए 76वां संविधान संशोधन भी हुआ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही फैसला दिया कि 50' से ज्यादा आरक्षण किसे-क्यों दिया, यह औचित्य वहां की सरकार एक व्यापक सर्वे करवाकर आंकड़ों से साबित करे।
(दैनिक भास्कर से साभार)

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