लेख

कोई कैसे जाने कि आप गुर्जर हैं
चौंकिए मत। मैं कोई आपके गुर्जर होने पर सवाल नहीं उठा रहा हूं। यह मैं अपनी परेशानी बता रहा हूं। ज्यादातर गुर्जर अपने नाम के आगे गोत्र लगाते हैं, परेशानी यहीं से शुरू होती है। गोत्र तो हर पांच-दस गांव या जिला बदलने के साथ ही बदल जाता है। फिर हमारे समाज में इतने गोत्र हैं कि शायद ही ऐसा कोई गुर्जर होगा जिसे सब याद हों। मैं आए दिन कन्फ्यूज होता हूं हमारे समाज के लोगों के नाम सुनकर। इस परेशानी से शायद आप भी कभी न कभी रूबरू जरूर हुए होंगे। उसके नाम से आपको लगा ही नहीं होगा कि वो गुर्जर हो सकता है। जब उसने अपना परिचय एक गुर्जर के नाते दिया होगा तो आप भी चौंके बिना नहीं रह पाए होंगे। गोत्र वाला मामला तो एक बार फिर भी पकड़ में आ जाता है, लेकिन कईं महानुभाव तो ऐसे होते हैं जो अपने नाम के साथ गांव का नाम जोड़कर रखते हैं। जब तक आपका उनसे परिचय नहीं हो आप उनके नाम से तो अंदाजा ही नहीं लगा सकते कि वो आपके समाज से है।
आदमी का नाम उसकी खुद की पहचान होती है और उपनाम उसे एक समाज, एक समुदाय से जोड़ता है। ऐसे में एक समाज, जैसे कि गुर्जर समाज से जुड़े लोगों की पहचान नाम के आगे जुडऩे वाला उपनाम 'गुर्जर' ही है। अगर हम अपने नाम के आगे गुर्जर लगाते हैं तो हमारे समाज से जुड़ा आदमी, चाहे वो दुनियां के किसी भी कोने में हो हमारा नाम देख कर एक दम से बोल पड़ेगा अरे ये तसे मेरे समाज का है। गोत्र वाला नाम देखकर यह उत्साह नहीं जगेगा बल्कि असमंजस की स्थिति हो जाएगी। कारण स्पष्ट है, मिलते-जुलते गोत्र कई जातियों में हैं।
तो बगड़ावतों गोत्र रूपी मनकों में अलग-अलग न बिखर कर गुर्जर रूपी एक माला में पिर जाओ। अपने नाम के आगे गुर्जर लगाओ। गर्व से कहो हम गुर्जर हैं। यही एक कुंजी है जो देश-विदेश में फैले समाज के लोगों को एक कर सकती है। एक जाजम पर ला सकती है। जब एक साथ बैठेंगे तो पता चल ही जाएगा किसका गोत्र क्या है।
बगडावतों जाग जाओ
राजस्थान के इतिहास मैं आजादी के बाद का पहला इतना बड़ा आन्दोलन करने के बाद गुर्जर समाज जिस तरह से बिखरा, याद करते ही मन भर आता है, जिन लोगों ने हमारे बच्चों के भविष्य के लिए जान दे दी, हम उन्हें ही भूल कर अपने -अपने स्वार्थों मैं फँस गए। नतीजा सामने है. राजस्थान विधानसभा के चुनावों मैं हमारे समाज के ज्यादातर लोगों को हार का सामना करना पड़ा. वजह भी हमारे लोग ही रहे. किसको दोष दें. किसी के लिए समाज से बड़कर पार्टी हो गयी तो कोई अपने को समाज से ही ऊपर समझाने लगा. टिकट क्या दिखा समाज के प्रत्याशी के सामने ही ताल ठोंक दी. दी हम तो डूबेंगें सनम तुम्हें भी ले डूबेंगें वाली बात कर दी. जो बीत गया उसे बिसार कर अब तो एक जाजम पर आओ. व्यक्तिगत आग्रह छोडो और समाज हित पर ध्यान दो. वक़्त निकल जायेगा. बाद मैं यह सोचते रह जाओगे कि उस समय चेत जाते तो अच्छा था. इसलिए मेरा तो यही कहना है कि बोल दो देवनारायण की जय. गूंजने दो गोठों के स्वर. सुनने दो सरकार को. बगडावतों जाग जाओ.
शिवराज गूजर