Monday, January 17, 2011

लाठियां -गोलियां पुलिस की, बताया आपसी झगड़ा

गुर्जर आंदोलन :  सरकार के रिकॉर्ड की गफलत, गुर्जरों ने जताई आपत्ति
जयपुर . गुर्जर आरक्षण आंदोलन में मारे गए और घायल हुए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने के मामले में सरकार के विरोधाभासी आदेशों से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
सरकार ने इन लोगों को पुलिस फायरिंग की जगह आपसी झगड़े में मृत व घायल माना और परिजनों को मुआवजा भी दे दिया, जबकि झगड़े के मामले में पीडि़तों के परिजन को मुआवजा नहीं दिया जा सकता। मामले का खुलासा होने के बाद सरकार अब भूल सुधारने की बात कह रही है।
उधर, गुर्जर नेताओं ने भी पुलिस फायरिंग की जगह आंदोलनकारियों को झगड़े में मृत और घायल बताने को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है। कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला ने कहा कि सरकार को इस गलती को ठीक कराना चाहिए।
घटना 29 और 30 मई 2007 की है। बूंदी जिले में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में 7 जनों की मौत हो गई और 71 लोग घायल हुए थे। 9 जून 2007 को बंूदी कलेक्टर कार्यालय की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया था कि 6 आंदोलनकारियों की मौत पुलिस फायरिंग से तथा एक की मौत आपसी झगड़े में हुई, लेकिन सातों मृतकों को 5-5 लाख रु. का मुआवजा दे दिया गया था। इसके एक साल बाद 22 मई 2008 को फिर इसी कार्यालय से एक और आदेश जारी हुआ, जिसमें 71 घायलों को आपसी झगड़े में घायल बताया गया और उनके लिए 11.70 लाख रु. का मुआवजा मंजूर किया गया था। इसमें गंभीर घायल 27 आंदोलनकारियों के लिए 25-25 हजार रु. और 44 साधारण घायलों को 10-10 हजार रु. मुआवजा देने का हवाला दिया गया था। यह मुआवजा भी बांट दिया गया।
इस लापरवाही को लेकर जब अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) पीके देब से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पुलिस एफआईआर में तो आपसी झगड़ा दर्ज था, लेकिन फिर से सत्यापन करने पर लोगों के आंदोलन में घायल होने की बात सामने आई है। वास्तव में ये लोग आंदोलन में ही घायल हुए थे न कि आपसी झगड़े में। अगर चूक हुई है तो उसे दुरुस्त कराया जाएगा।

 पुलिस की गोलियां चलने के बावजूद रिकॉर्ड में आंदोलनकारियों को आपसी झगड़े में घायल दर्शाना घोर आपत्तिजनक है। सरकार को यह गलती  ठीक करनी चाहिए।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला,
अध्यक्ष, गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति

 बंूदी जिले का यह मामला मुख्य सचिव के साथ होने वाली बैठक में उठाएंगे और सरकार से रिकॉर्ड दुरुस्त करने को कहेंगे।
डॉ. रूपसिंह, प्रवक्ता, गुर्जर
आरक्षण संघर्ष समिति

दैनिक भास्कर से साभार

No comments:

Post a Comment