Thursday, July 08, 2010

'पीपलखेड़ा में बर्बरता की हदें लांघ गई थी पुलिस'

चश्मदीद गवाहों के दिल से फूटी पीड़ा, पुलिस ने ऐसे गोलियां चलाईं, जैसे हम कोई दुश्मन देश के हमलावर हों
 
पीपलखेड़ा-पाटोली पुलिस गोलीकांड के गवाह बंसल आयोग में ऐसे खड़े नजर आए।

जयपुर.  गुर्जर आंदोलन के पहले दौर में पीपलखेड़ा और पाटोली में आंदोलनकारियों पर पुलिस गोलीबारी की घटना के 15 चश्मदीद गवाह सोमवार को यहां बंसल आयोग के सामने पेश हुए। इन सबने पुलिस की ज्यादतियों और गोलीबारी का ब्यौरा पेश करते हुए कहा कि गुर्जर आंदोलनकारियों पर ऐसे गोलियां दागी गईं, मानो वे कोई दुश्मन देश के हमलावर हों। गुर्जर आंदोलन के दौरान हुई हिंसक घटनाओं की जांच के लिए हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज फतेह चंद बंसल की अध्यक्षता में आयोग गठित है।
पीपलखेड़ा के चश्मदीदों ने आयोग के सामने बताया कि रात में पुलिसवाले घरों में घुस गए और महिलाओं से दुव्र्यवहार किया। छोटे बच्चों तक को बेरहमी से पीटा गया। पुलिसवाले बार-बार महिलाओं और बच्चों को पीटते हुए पूछ रहे थे कि बाहर से आंदोलन के लिए आए लोग कहां छिपे हैं। चश्मदीद सोनपाल और बाबूलाल ने बताया कि पुलिस का वह बर्बर चेहरा वे मरते दम तक नहीं भूलेंगे।
आयोग के सामने पीपलखेड़ा के पूरनसिंह, धर्मसिंह, रतनसिंह, बाबूलाल, रमेश, सोनपाल, नानकराम पुजारी, गोपालसिंह राजपूत, राजाराम, पाखरियालाल, दौलत सिंह और नीरज गुर्जर ने बयान दर्ज करवाए तो गुर्जर आंदोलन के जख्मों की यादें फिर से ताजा हो गईं।
चश्मदीदों की जुबानी, गोलीकांड का सच
गोलीकांड के चश्मदीद पूरनसिंह गुर्जर सहित कई गवाहों ने आयोग को दिए
बयानों में बताया कि 28 मई 2007 को पुलिस ने स्थानीय लोगों को यातनाएं देनी शुरू कर दी। पुलिस के जवान गुर्जरों के घरों में घुस गए और जमकर कहर बरपाया। महिलाओं और बच्चों को इतना आतंकित किया गया कि वे आज भी उस घटना को याद कर सहम जाते हैं।
पुलिस लोगों पर आंदोलन के लिए बाहर से आए हुए लोगों के बारे में बताने का दबाव बना रही थी। रात 11 बजे पुलिस ने आंसू गैस के गोले और रबर बुलेट छोडऩा शुरू कर दिया। यह सब तड़के 3 बजे तक चला। सुबह आसपास के गांवों के लोग हाईवे के दोनों तरफ जुटे तो पुलिस ने बिना चेतावनी फायरिंग कर दी। गुर्जर आंदोलन के पहले चरण में 29 मई 2007 को पीपलखेड़ा पाटोली में हुए पुलिस गोलीकांड में 6 लोगों की मौत हो गई थी।
दैनिक भास्कर से साभार

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