Friday, January 08, 2010

विशेष आरक्षण के लाभ से पहले नई भर्तियां हुईं तो आंदोलन : बैंसला

पुरानी आरक्षण व्यवस्था से ही भर्तियां शुरू करने के सरकारी फैसले पर गुर्जरों में जबर्दस्त आक्रोश
जयपुर . पुरानी आरक्षण व्यवस्था से ही भर्तियां शुरू करने के सरकारी फैसले पर गुर्जरों में जबर्दस्त आक्रोश है। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति ने उन्हें विशेष आरक्षण का लाभ मिलने तक कोई भी भर्ती नहीं करने की मांग की है। समिति ने कहा है कि यदि सरकार फिर भी भर्तियां करती है तो गुर्जर समुदाय फिर से आंदोलन करेगा, जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेश संयोजक कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला ने सरकार के इस फैसले को गुर्जरों के साथ धोखा बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने हमारी पीठ में छुरा घोंपा है। उन्होंने कहा कि सरकार गुर्जरों को उनका हक देने के बजाय छीन रही है।
       गुर्जरों में इस फैसले से इतना आक्रोश है कि पंचायत चुनाव में कांग्रेस का बहिष्कार भी किया जा सकता है। बैसला ने कहा कि वे जल्दी ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलकर हाईकोर्ट में आरक्षण विधेयक पर मांगा गया जवाब जल्दी पेश करने और भर्तियां रोकने की मांग करेंगे। अगर उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे लोकतांत्रिक ढंग से आंदोलन करेंगे। बैसला ने कहा कि सरकार गुर्जरों के साथ अन्याय कर रही है। विधानसभा में 200 विधायकों ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया था। राजस्थान गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष कैप्टेन हरिप्रसाद तंवर ने आरोप लगाया कि सरकार खुद ही उन्हें आंदोलन के लिए मजबूर कर रही है। सरकार को गुर्जरों के पिछड़ेपन को देखते हुए या भर्तियां तुरंत रोक देनी चाहिए या उनमें गुर्जरों को भी विशेष आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।
कुछ गुर्जर मुख्यमंत्री के साथ भी
ऊर्जा मंत्री जितेंद्रसिंह के नेतृत्व में कुछ गुर्जर गुरुवार रात मुख्यमंत्री से मिले और भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के उनके फैसले का स्वागत किया। गुर्जर नेताओं ने आंदोलन की चेतावनी देनेे वालों से कहा कि उनके पास कोई विकल्प हो तो वे बताएं। इन नेताओं में ऊर्जा मंत्री जितेंद्रसिंह, हरिसिंह महुवा, रामचंद्र सराधना, गोपीचंद गुर्जर, बिजेंद्र्र सूपा, रामस्वरूप गुर्जर, संजय गुर्जर, अत्तरसिंह भड़ाना आदि थे। मुख्यमंत्री ने इन नेताओं से कहा कि समाज चाहे तो इस मामले की पैरवी करने के लिए किसी भी विधिवेता की सेवाएं ले सकता है।
इन नेताओं ने कहा कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई है, न कि राज्य सरकार ने। 50 हजार नौकरियों को रोके रखना भी उचित नहीं है। नवीं सूची को लेकर सरकार ने विधेयक पारित होते ही केंद्र को लिख दिया था। लेकिन यह सब जानते है कि सुप्रीम कोर्ट को उसका रिव्यू करने का अधिकार है। इन नेताओं ने आरोप लगाया कि कुछ विपक्ष के नेता इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से उछाल कर समाज को भ्रमित कर रहे हैं।

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