Tuesday, September 02, 2008

ॐ गुरूजी चाँद सूरज, जिह्वा ज्वाला सरस्वती, हिरदे बसो हमेश, भूल्या अक्षर कंठा कराओ तो गौरी पुत्र गणेश, लगी कूंची खुल्या कपाट, जा देख्या ब्रह्माण्ड का घाट, नो नाडी सुरसत बहे, गुरु शब्द लिव लागी रहे, हिरदे कूंची का जाप सही तो महादेवजी ने कही,
कुछ भी कराने से पहले गणेशजी का और कुछ भी लिखने से पहले माँ सरस्वती का स्मरण जरूरी है. मैंने भी एक छोटी सी स्तुति से दोनों का ध्यान किया है.
शिवराज गूजर

4 comments:

  1. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। अच्छा लिखते हैं। सक्रियता बनाए रखें। शुभकामनाएं।

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  2. हिन्दी में लिखने की बधाई स्वागत निरंतरता की चाहत
    समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  3. आपकी टिप्‍पणी के लिए धन्‍यवाद.

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  4. आपकी वंदना अच्छी लगी,....राजस्थानी भाषा वैसे भी मीठी होती है ,नववर्ष की बधाई....सुख -एश्वर्य आपको मिले

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