Tuesday, July 03, 2012

गहलोत तब तक सोचते हैं जब तक बात बासी न हो जाए

खुलकर बोले किरोड़ी सिंह बैसला 

गहलोत कुशल प्रशासक, चापलूसों से घिरी रहती हैं वसुंधरा

सबकी एक नीति है-डिले, डिफ्यूज और डिनायल

त्रिभुवन . जयपुर
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत काम तो करते हैं, लेकिन इतना विलंब से कि सब बदमजा (बासी) हो जाता है। हालांकि वे कुशल प्रशासक हैं। वसुंधरा राजे बेईमान सलाहकारों और चापलूसों से नहीं घिरी होतीं तो वे रेयरेस्ट रेयर मुख्यमंत्री होतीं। ये कहना है गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैसला का। बैसला ने कहा कि वे सिर्फ पांच प्रतिशत आरक्षण चाहते हैं, चाहे कैसे भी दो। पेश हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-
आपने गहलोत और वसुंधरा राजे दोनों की सरकारों के समय आंदोलन किया। बुनियादी फर्क क्या नजर आया?
क्च दोनों सरकारों की एक टिपिकल मोडस आपरेंडी रही है। डिले, डिफ्यूज और डिनायल। देर करो, लटकाओ और हाथ खड़े कर दो। अगर अशोक गहलोत ने वही किया जो हमारे साथ वसुंधरा ने किया तो इस आदमी को भी वहीं जाना होगा, जहां वसुंधरा गईं।
वसुंधरा राजे ने आपकी मांग मानी होती तो क्या होता?
क्च वसुंधरा राजे ने मेरा कहा माना होता तो वे आज कहीं और होतीं, वहां नहीं होतीं जहां आज हैं। उन्होंने हमें अंडर एस्टीमेट किया। जब चुनाव आए तो हमने उन्हें वही सब उसी तरह वैसे का वैसे लौटाया, जो उन्होंने गुर्जर समाज को आंदोलन के दौरान दिया था। उन्होंने हमारे साथ लुका-छिपी का खेल खेला। हमने भी वही किया। नतीजा सबके सामने है।
अगर वसुंधरा इतनी खराब हैं तो आपने भाजपा के टिकट पर चुनाव क्यों लड़ा?
क्च ये मेरा पर्सनेलिटी कल्ट है। मैं जेंटलमैन की तरह बिहेव करता हूं। अगर चुनाव लड़ा तो मकसद यही था कि संसद में आवाज उठाऊं। मेरा वो निर्णय गलत नहीं था। 
आपने कभी वसुंधरा से कहा नहीं कि वे गलत सलाहकारों से घिरी हैं?
क्च 2008 की बात है। मैं पीलूपुरा से लौटकर वसुंधरा राजे से मिला। वे अपने ऑफिस में थीं। भिड़ते ही बोलीं : कर्नल, हम दोनों में गैप कहां रह गया? मैंने जवाब दिया : यू आर ब्लू-ब्लड पीपल। आप शाही लोग हैं। आप हर वक्त चापलूसों से घिरी रहती हैं। आपने तो मेरा फोन तक अटेंड नहीं किया। आपके सलाहकारों ने मेरी पूरी गलत तस्वीर आपको दिखाई और इस ग्रॉस मिस अंडरस्टैंडिंग ने सही फैसला नहीं होने दिया।
अब फिर आपकी मांग नहीं मानी जा रही। आप क्या कहते हैं?
क्च ये आदमी (अशोक गहलोत) सोचता बहुत अच्छा है, लेकिन सोचता ही सोचता रहता है। किसी चीज को करने में इतना टाइम लगाता है कि जब तक चीज बासी नहीं हो जाती। मैं जूलियर सीजर पढ़ रहा था। उसमें सीजर अपने बेटे से कहता है कि कुछ काम करो तो जोरदार आवाज में कहो ताकि अड़ोसी-पड़ोसी सुन लें।
क्या ओबीसी कमीशन को ऐसी जातियों को बाहर नहीं निकालना चाहिए, जो संपन्न हो गई? 
ये ओबीसी कमीशन का काम है। उसे इस काम को ईमानदारी से करना चाहिए। मैं ये नहीं कहता कि इस या उस जाति को निकाल दो। कुछ को तो आरक्षण की खाते-खाते अपच हो गई और कुछ ने अभी तक पत्तल ही नहीं देखी। समाज आज जातियुद्ध की तरफ बढ़ रहा है।
माना तो ये जा रहा है कि आप तो गहलोत के प्रशंसक हैं?
क्च एक मायने में गहलोत कुशल प्रशासक हैं। वे वेल्फेयर ओरिएंटिड हैं। उन्होंने एक प्रतिशत आरक्षण निर्विवाद रूप से दे ही दिया।
क्या आप ओबीसी के 21 प्रतिशत में ही पांच प्रतिशत चाहते हैं? 
मैं इस पचड़े में नहीं पड़ता। हमने आरक्षण की मांग इसलिए की थी कि आरपीएससी-यूपीएससी के रिजल्ट देख लो। कुछ लोग सारे कोटे को खा रहे हैं और कुछ ताक रहे हैं। ऐसा है जैसे मानवीयता का अकाल पड़ गया है। क्या ऐसा आरक्षण संवैधानिक डकैती नहीं है? इसलिए हमें तो पांच प्रतिशत आरक्षण अलग से दे दो। चाहे कैसे भी।
ओबीसी आयोग के अध्यक्ष इसरानी ने कहा है कि वे रिपोर्ट चेक करेंगे। जरूरत पड़ी तो दुबारा जांच करेंगे कि हालात क्या हैं? 
मैं तो जस्टिस इसरानी से कहता हूं, हमारे सब नेताओं को चैलेंज करता हूं, ये एक रात गाडिया लुहारों के घरों में एक गुजार लें और सही-सलामत उठ जाएं तो मैं जीवन में कभी आरक्षण की मांग नहीं करूंगा! गुर्जरों, बंजारों, राइकों और लुहारों के हालात एक जैसे हैं। मैं इनके बीच रहता हूं, मैं जानता हूं।
इस सरकार ने भी आरक्षण नहीं दिया तो क्या करेंगे?
क्च सभी कान खोलकर सुन लें, जो हमारी देखभाल करेगा, हम उसकी देखभाल करेंगे। लेकिन अगला चुनाव बहुत निर्णायक होगा। उसमें बहुत कुछ निर्णायक होगा।
वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत में क्या मूल फर्क देखा?
वो बड़ी तेजतर्रार (अस्टूट) हैं और ये जेंटलमैन। आप अगर दूध से भरा गिलास रख देंगे तो ये जेंटलमैन घूंट तब भरेगा जब तक बिल्ली को न पिला ले! और अगर वसुंधरा के सलाहकार सही होते तो बात कुछ और होती। वसुंधरा अगर अपने मन से फैसले लें तो मेरा मानना है, वे रेयरेस्ट रेयर रूलर हैं।
मुख्यमंत्री से आपकी नजदीकियां बढ़ी हैं। माना जा रहा है कि आप इस बार कांग्रेस से चुनाव लड़ेंगे?
अभी तो कोई इरादा नहीं। लेकिन ये कह सकता हूं कि मैंने अपने ही समाज नहीं, अन्य समाजों में भी अच्छा स्थान बनाया है। मैं सामाजिक न्याय को दुरुस्त करने के लिए लडूंगा।
(source: dainikbhaskar)

No comments:

Post a Comment