कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला ने जयपुर में दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में लगाया आरोप
जयपुर. शैक्षणिक संस्थाओं में विशेष पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर एक बार फिर संघर्ष की तैयारी में हैं। इनका कहना है कि नौकरियों में तो बैकलॉग रखा जा सकता है, लेकिन शैक्षिक संस्थाओं में आरक्षण नहीं मिलना उनका बहुत बड़ा नुकसान है। सरकार ने शैक्षणिक संस्थाओं में बाकी 4 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए तीन-चार दिन का समय मांगा था, जबकि 20 दिन से ऊपर निकल चुके हैं और अभी तक कोई फैसला नहीं किया गया है।
आंदोलनकारी नेता कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला ने सोमवार को जयपुर में भास्कर से विशेष बातचीत में आरोप लगाया कि सरकार डिले, डिफ्यूज और डिनाइड यानी बहकाओ, देर करो और बाद में मना कर दो, की नीति पर चल रही है। सरकारों को सहयोग करने में हमारी ओर से कोई कसर नहीं रही है, लेकिन सरकार ही टालमटोल का रवैया अपनाती रही है। अगर हमारा हक नहीं मिला तो संघर्ष करना ही पड़ेगा।
घरौंदा नहीं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहिए : मुख्यमंत्री ग्रामीण बीपीएल आवास योजना को राजनीति से प्रेरित और वोट पकाने वाली योजना बताते हुए बैसला ने कहा कि हमें घरौंदा नहीं बल्कि शिक्षा चाहिए। पूर्वी राजस्थान के बीपीएल को झोपड़ी में रहना मंजूर है, लेकिन उसके बच्चों को उच्च क्वालिटी की शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे मजदूर का बेटा भी पढ़ लिखकर अफ़सरी कर सके। एक तरफ तो सरकारें लोगों को शिक्षित होने के लिए कहती हैं, दूसरी ओर हमें क्वालिटी एज्यूकेशन से वंचित किया जा रहा है। यह हमारे साथ बड़ी साजिश है। पूर्वी राजस्थान में न तो कोई विश्वविद्यालय है, न इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज। यहां तक कि आईआईटी भी पश्चिमी राजस्थान में चली गई और वल्र्ड क्लास यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी भी पूर्वी राजस्थान को नहीं मिल पाई।
विभाजन की ओर ले जाएंगे हालात : बैसला ने कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से राजस्थान के टुकड़े करने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन अगर सरकारें पूर्वी राजस्थान के साथ इसी तरह भेदभाव करती रहीं तो एक दिन विभाजन की मांग उठना स्वाभाविक है। दुनियाभर में जितनी भी क्रांतियां हुई हैं, उनकी वजह केवल आर्थिक असमानता ही रही है। पूर्वी राजस्थान में भी ऐसे ही हालात बन रहे हैं।
जयपुर. शैक्षणिक संस्थाओं में विशेष पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर एक बार फिर संघर्ष की तैयारी में हैं। इनका कहना है कि नौकरियों में तो बैकलॉग रखा जा सकता है, लेकिन शैक्षिक संस्थाओं में आरक्षण नहीं मिलना उनका बहुत बड़ा नुकसान है। सरकार ने शैक्षणिक संस्थाओं में बाकी 4 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए तीन-चार दिन का समय मांगा था, जबकि 20 दिन से ऊपर निकल चुके हैं और अभी तक कोई फैसला नहीं किया गया है।
आंदोलनकारी नेता कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला ने सोमवार को जयपुर में भास्कर से विशेष बातचीत में आरोप लगाया कि सरकार डिले, डिफ्यूज और डिनाइड यानी बहकाओ, देर करो और बाद में मना कर दो, की नीति पर चल रही है। सरकारों को सहयोग करने में हमारी ओर से कोई कसर नहीं रही है, लेकिन सरकार ही टालमटोल का रवैया अपनाती रही है। अगर हमारा हक नहीं मिला तो संघर्ष करना ही पड़ेगा।
घरौंदा नहीं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहिए : मुख्यमंत्री ग्रामीण बीपीएल आवास योजना को राजनीति से प्रेरित और वोट पकाने वाली योजना बताते हुए बैसला ने कहा कि हमें घरौंदा नहीं बल्कि शिक्षा चाहिए। पूर्वी राजस्थान के बीपीएल को झोपड़ी में रहना मंजूर है, लेकिन उसके बच्चों को उच्च क्वालिटी की शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे मजदूर का बेटा भी पढ़ लिखकर अफ़सरी कर सके। एक तरफ तो सरकारें लोगों को शिक्षित होने के लिए कहती हैं, दूसरी ओर हमें क्वालिटी एज्यूकेशन से वंचित किया जा रहा है। यह हमारे साथ बड़ी साजिश है। पूर्वी राजस्थान में न तो कोई विश्वविद्यालय है, न इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज। यहां तक कि आईआईटी भी पश्चिमी राजस्थान में चली गई और वल्र्ड क्लास यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी भी पूर्वी राजस्थान को नहीं मिल पाई।
विभाजन की ओर ले जाएंगे हालात : बैसला ने कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से राजस्थान के टुकड़े करने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन अगर सरकारें पूर्वी राजस्थान के साथ इसी तरह भेदभाव करती रहीं तो एक दिन विभाजन की मांग उठना स्वाभाविक है। दुनियाभर में जितनी भी क्रांतियां हुई हैं, उनकी वजह केवल आर्थिक असमानता ही रही है। पूर्वी राजस्थान में भी ऐसे ही हालात बन रहे हैं।
( दैनिक भास्कर से साभार)
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